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उ॒त गाव॑ इवादन्त्यु॒त वेश्मे॑व दृश्यते । उ॒तो अ॑रण्या॒निः सा॒यं श॑क॒टीरि॑व सर्जति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta gāva ivādanty uta veśmeva dṛśyate | uto araṇyāniḥ sāyaṁ śakaṭīr iva sarjati ||

पद पाठ

उ॒त । गावः॑ऽइव । अ॒द॒न्ति॒ । उ॒त । वेश्म॑ऽइव दृ॒श्य॒ते॒ । उ॒तो इति॑ । अ॒र॒ण्या॒निः । सा॒यम् । श॒क॒टीःऽइ॑व । स॒र्ज॒ति॒ ॥ १०.१४६.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:146» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (गावः-इव-अदन्ति) गौवें जैसे अरण्यपशु गवय-नीलगाय घास-आदि खाते हैं (उत) और (वेश्म-इव दृश्यते) कहीं पर घर जैसा गुल्म आदि का वितान-घेरा बना हुआ दिखाई देता है (उत) और सायङ्काल के समय (अरण्यानिः) अरण्यानी (शकटीः-इव) गाड़ियों जैसी को (सर्जति) वायु के प्रचलन से चलाती हुई सी दिखलाई देती है ॥३॥
भावार्थभाषाः - अरण्यों के समूह अरण्यानी का यह भी एक दृश्य है, उनमें नीलगाय आदि वन्य पशु घास खाते हुए विचरते हैं और वहीं पर गुल्म तरु आदियों से छाया हुआ घर जैसा दिखलाई पड़ता है और सायंकाल के समय तीव्र वायु के झोंके लगते हैं, जैसे गाड़ियाँ चलती हों ॥३॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि च (गावः-इव-अदन्ति) गाव इवारण्यपशवो गवयाः खलु घासादिकं भक्षयन्ति (उत) अपि च (वेश्म-इव दृश्यते) क्वचित् गृहमिव गुल्मादिवितानो दृश्यते (उत) अपि च (सायम्) सायंकाले (अरण्यानिः-शकटीः-इव सर्जति) वायुप्रचलनादरण्यानी शकटीर्यानानि विसृजति चालयति-इव दृश्यते ॥३॥